एकांतिक वार्तालाप और दर्शन : श्री हित प्रेमानंद जी महाराज
21 मार्च 2025 को, श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने ‘एकांतिक वार्तालाप और दर्शन‘ शीर्षक से एक ज्ञानवर्धक आध्यात्मिक प्रवचन दिया (जो YouTube पर उपलब्ध है)। इस सत्र में भक्तों के हृदय से पूछे गए प्रश्नों की एक श्रृंखला थी, जिनका उत्तर महाराज जी ने गहन ज्ञान और भक्ति तथा आध्यात्मिकता में निहित व्यावहारिक सलाह के साथ दिया। नीचे, हम चर्चा किए गए प्रमुख विषयों का अन्वेषण करते हैं, जो पाठकों को महाराज जी द्वारा साझा किए गए परिवर्तनकारी शिक्षाओं की एक झलक प्रदान करते हैं।
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के आध्यात्मिक प्रश्नोत्तर
- एक अंजान भय बना रहता है, मन अशांत रहता है।
- कुछ समय से संसार से वैराग्य और अंदर चिड़चिड़ापन बना रहता है।
- पारिवारिक व सामाजिक प्रतिकूलता मिलने के कारण भगवान की ओर आ गई हूँ।
- क्या सत, रज और तमोगुण से अलग भी कोई गुण है, या इन्हीं को प्रेम कहते हैं?
- अंदर ही अंदर भगवान से बात करती रहती हूँ, पर पूजा-पाठ में मन नहीं लगता।
- तुरीय अवस्था क्या होती है?
- सभी मंदिरों में आपका ही दर्शन होता है।
- किडनी 60% ख़राब हो गई थी, डिप्रेशन में था, लेकिन आपको देखकर चिंता मुक्त हो गया हूँ।
- क्या अशुद्ध अवस्था में इष्ट का नाम जप करना चाहिए?
- राम नाम जापकों के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न!
- हमें ज्ञान बहुत है पर खुद पर इस्तेमाल क्यों नहीं कर पा रहे हैं?
1. संसार से वैराग्य और मन में चिड़चिड़ापन क्यों बना रहता है?
महाराज जी:
संसार की नश्वरता और कपट का बोध होने पर मन स्वाभाविक रूप से वैराग्य की ओर झुकता है। चिड़चिड़ापन इसलिए आता है क्योंकि मन अभी पूर्णतः भगवान में नहीं लगा। समाधान यह है कि बाहर से संसार के कर्तव्यों का निर्वाह करें, पर अंदर से यह समझें कि सब कुछ भगवान की लीला है। भजन करते हुए व्यवहार को मधुर बनाए रखें।
2. पारिवारिक और सामाजिक प्रतिकूलताएँ भगवान की ओर कैसे ले जाती हैं?
महाराज जी:
जब संसार के लोग धोखा देते हैं या प्रतिकूलता मिलती है, तो हमें संसार की असलियत समझ में आती है। यह भगवान की कृपा है कि वे हमें माया के बंधन से मुक्त करने के लिए ऐसी परिस्थितियाँ लाते हैं। प्रतिकूलता को “भगवान का रास्ता खोलने वाली चाबी” मानें और नाम जप में डूब जाएँ।
3. सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण से परे प्रेम क्या है?
महाराज जी:
तीनों गुण माया के बंधन हैं, जबकि प्रेम गुणातीत है। प्रेम वह अवस्था है जब मन निरंतर भगवान के चिंतन में लीन हो जाता है। यह भजन और सत्संग से प्राप्त होता है। जैसे नाम जप करने वाला रज-तम के प्रभाव से मुक्त होकर प्रेम की अवस्था में पहुँच जाता है।
4. भगवान से मन ही मन बात करती हूँ, पर पूजा-पाठ में मन नहीं लगता। क्या यह सही है?
महाराज जी:
मनोराज्य भर से कल्याण नहीं होता। पूजा-पाठ, नाम जप, और सेवा जैसे साधन आवश्यक हैं। भगवान से प्रेम करने का अर्थ है उनके लिए कर्म भी करना। ठाकुर जी को भोग लगाएँ, रामचरितमानस पढ़ें, और नियमित नाम जप करें। यही सच्ची भक्ति है।
5. तुरीय अवस्था (Turiya Avastha) क्या होती है?
महाराज जी:
तुरीय अवस्था चेतना की वह स्थिति है जहाँ सुख-दुख, लाभ-हानि, और मान-अपमान का भान नहीं रहता। यह नाम जप और सत्संग से धीरे-धीरे प्राप्त होती है। इसके लिए पहले मन को एकाग्र करें: 5 मिनट भी नाम जप में डूब जाएँ, फिर समय बढ़ाते जाएँ।
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6. सभी मंदिरों में आपके ही दर्शन क्यों होते हैं?
महाराज जी:
भगवान सर्वव्यापी हैं, पर संतों में उनकी विशेष कृपा रहती है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं: “राम ते अधिक राम कर दासा”—भगवान से बढ़कर उनके भक्त होते हैं। संतों में भगवान का सान्निध्य देखकर ही हृदय शुद्ध होता है।
7. गंभीर बीमारी और डिप्रेशन में शांति कैसे पाएँ?
महाराज जी:
शारीरिक कष्ट हो या मानसिक अशांति, भगवान का स्मरण ही एकमात्र सहारा है। नाम जप करें और यह विश्वास रखें कि “मेरा जीवन भगवान के हाथ में है।” प्रतिकूलता को उनकी कृपा समझें। जैसे किडनी की समस्या में भी नाम जप करते रहें—भगवान ही चिकित्सक हैं।
8. मासिक धर्म या सूतक में नाम जप कर सकते हैं?
महाराज जी:
हाँ! नाम जप और मानसिक पूजा कर सकते हैं, बस माला छूने या ग्रंथ पढ़ने से बचें। तीन दिन बाद स्नान करके पूर्ण रूप से सेवा में लौटें। भगवान भाव के भूखे हैं—अशुद्ध अवस्था में भी उनका स्मरण करना पाप नहीं, बल्कि पवित्रता लाता है।
9. ज्ञान होते हुए भी उसे व्यवहार में क्यों नहीं उतार पाते?
महाराज जी:
ज्ञान बिना भजन के “कागज की तलवार” के समान है। अध्यात्म बल नाम जप से आता है। नियम बनाएँ: रोज़ 5 मिनट नाम जप करें, फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ। जब मन विकारों की ओर भागे, तो राम-राम कहते हुए उसे वापस लाएँ।
10. राम नाम जपने वालों के लिए कोई विशेष सलाह?
महाराज जी:
हनुमान जी की आराधना करें! वे राम-प्रेम के अधिष्ठाता हैं। रामचरितमानस का नियमित पाठ करें और “सीताराम” नाम का जप करें। याद रखें: “जब तक जीवन है, तब तक नाम लेते रहो। मृत्यु के बाद यही नाम तुम्हें भगवान तक ले जाएगा।”
महाराज जी सिखाते हैं कि हर प्रश्न का समाधान भगवान के नाम और भजन में छिपा है। चाहे संसार की चुनौतियाँ हों या आंतरिक अशांति, नाम जप और सत्संग ही वह सीढ़ी हैं जो भगवान तक पहुँचाती है। “राधे-राधे“ या “सीताराम“ कहते रहें—यही मोक्ष का मार्ग है।
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