प्रदोष व्रत: महत्व, विधि, और लाभ

प्रदोष व्रत: महत्व, विधि, और लाभ

प्रदोष व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि आरंभ होने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। यह काल हर स्थान पर सूर्यास्त के समय के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।

धर्म शास्त्रों में प्रदोष व्रत का महत्व

सनातन धर्म में व्रतों और साधनाओं का बड़ा महत्व है। इन्हें करने से व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ किए गए व्रत हमेशा फलदायी होते हैं। इन्हीं व्रतों में से एक, प्रदोष व्रत, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।

भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न होने के कारण “आशुतोष” कहा जाता है। जो भक्त पूरी निष्ठा और भक्ति से इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

प्रदोष व्रत क्या है?

प्रदोष व्रत भगवान शिव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए रखा जाता है, जैसे एकादशी व्रत भगवान विष्णु के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है।

इस व्रत का नाम “प्रदोष व्रत” इसलिए पड़ा क्योंकि चंद्र देव की एक गम्भीर बीमारी भगवान शिव की कृपा से त्रयोदशी के दिन ठीक हुई। भगवान शिव ने चंद्र देव के दोष दूर कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया, और तभी से यह व्रत शुरू हुआ।

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प्रदोष व्रत की विधि

प्रदोष व्रत: महत्व, विधि, और लाभ

प्रातःकाल की तैयारी:

  1. ब्रह्म मुहूर्त में जागकर नित्यकर्म से निवृत्त हों।
  2. स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर को साफ करें और दीप जलाएं।
  4. भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करें।
  5. पुष्प और बेलपत्र अर्पित करें। माता पार्वती और भगवान गणेश की भी पूजा करें।
  6. भोग लगाएं और आरती करें।

सायंकाल की तैयारी:

  1. सूर्यास्त के बाद पुनः स्नान करें।
  2. प्रदोष काल में (सूर्यास्त के 1 घंटे तक) भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें।
  3. शिव मंत्रों का जाप करें और भोग लगाएं।

पूजा सामग्री

  1. जल से भरा हुआ कलश और गंगाजल
  2. कच्चा दूध, दही, और शहद
  3. सफेद फूल और फूलों की माला
  4. धूप, दीप, कपूर
  5. बेलपत्र, धतूरा
  6. सफेद चंदन और मिठाई
  7. फल और दूब

प्रदोष व्रत शुरू करने का सही समय

धर्म शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत किसी भी महीने की कृष्ण या शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू किया जा सकता है। विशेष रूप से श्रावण मास या महाशिवरात्रि के बाद इसे प्रारंभ करना शुभ माना जाता है। व्रत को 11, 21, या 51 त्रयोदशी तक रखने से विशेष लाभ होता है।

प्रदोष व्रत के लिए नियम और वर्जनाएं

क्या न करें:

  1. दिन और रात में अन्न का सेवन न करें।
  2. नमक और तामसिक भोजन से बचें।
  3. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  4. किसी को मानसिक या शारीरिक कष्ट न पहुंचाएं।
  5. मांसाहार और नकारात्मक विचारों से बचें।

प्रदोष व्रत का महत्व और लाभ

  1. रविवार को व्रत: आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि।
  2. सोमवार और मंगलवार को व्रत: रोगों से मुक्ति।
  3. बुधवार को व्रत: इच्छाओं की पूर्ति।
  4. गुरुवार को व्रत: शत्रुओं का नाश।
  5. शुक्रवार को व्रत: दांपत्य जीवन में सुख-शांति।
  6. शनिवार को व्रत: संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण।

जो भक्त अपनी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए यह व्रत करते हैं, उन्हें विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से भगवान शिव की कृपा से जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं।

मार्गशीर्ष प्रदोष व्रत मंत्र (Pradosh Vrat 2025 Shiv Pujan Mantra)

शिव स्तुति पूजा मंत्र

द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि। उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।

भगवान शंकर आरोग्य मंत्र

माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा। आरोग्य देही में देव देव, देव नमोस्तुते।।

जानें, क्या है प्रदोष व्रत का महत्व और विधि जाने महाराज जी से